रविवार, 5 जुलाई 2009

मनमोहन….. मंदी.....मंहगाई....

महासमर 2009 में जनता ने अपना फैसला सुनाया...नया जनादेश दिया गया यूपीए को...काग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है...खैर नई संसद, नया चेहरा, या ये कह सकते है कि एक नई उम्मीद...डा. मनमोहन सिंह के शपथ लेने के साथ ही एक नया मिशन शुरु हो गया...मिशन मनमोहन...मंदी...मंहगाई, देखना ये होगा कि एक म बाकी के दो म पर भारी कैसे पड़ता है और उससे भी बड़ा सवाल ये कि कब....कब इस मंदी से निजात मिलती है....कब मंहगाई से छुटकारा मिलता है...मंदी के इस दौर में ये नहीं कह सकते कि भारत इससे अछूता है...फर्क हमारी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है...ड़ा. मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है और इस वक्त केंद्र में सबसे बड़े शीर्ष पर अगर हिंदुस्तान के आर्थिक सुधारों के जनक है तो उनका साथ देने के लिए पी. चिदंबरम और मोंटेक सिंह अहलूवालिया के साथ सी रंगराजन... ये वो चेहरे हैं जिन पर पूरा देश इस वक्त टकटकी लगाए देख रहा है... इस नई सरकार के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है और इस चुनौती को अगर वो एक मिशन के रुप में लेती है....तो पहले सौ दिन में वो क्या कर पाएगी और किस तरह से वो अपनी रणनीति बनाएगी...ये देखने लायक होगा....बहरहाल एक और शख़्स जो पहले भी वित्तमंत्री की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभा चुके है एक बार फिर संसद के पटल और एक अरब से ज़्यादा लोगों के सामने बजट पेश करेंगे...लेकिन इस बार पहले की तुलना में बहुत ज़्यादा फर्क होगा क्योंकि इस बार मंदी के हालात में जबकि मंहगाई दर निगेटिव में है बजट को पेश करना है...हर तबका, हर वर्ग, हर हिंदुस्तानी इस वक्त प्रणब दा की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रहा है उद्योगपति, व्यापारी, नौकरीपेशा, मज़दूर, किसान, उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग या फिर ग़रीब... उम्मीद एक ऐसा शब्द जो सभी को कहीं ना कहीं किसी ना किसी से होती है और कहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया क़ायम है अब जबकि नई सरकार का पहला आम बजट आने वाला है तो उम्मीद यही है कि सभी की उम्मीद पूरी हो, हर वर्ग को कुछ नहीं बहुत कुछ मिले और इस उम्मीद का इंतज़ार ना जाने कब ख़त्म होगा

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