शनिवार, 1 अगस्त 2009

हंगामा क्यूं है बरपा...?

काश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक भारत एक है...अब तक क़िताबों में यही पढ़ा है और यही पढ़कर हम सब बड़े हुए है लेकिन आज जो हम देख रहें है वो ये साबित भी करता है कि हां वाक़ई में हम एक है लेकिन हम अपनी एकता को जिस रुप में देख रहें हैं क्या वो रुप वाक़ई में हिंदुस्तान का रुप है क्या ये हमारा मुल्क है क्या हम ये हैं... आप सोच रहे होंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूं...दरअसल मैं बात कर रहा हूं हिंदुस्तान की उस आवाज़ की जो हमारी आवाज़ बनकर कभी विधानसभा...तो कभी लोकसभा में सुनाई देती है...हां हिंदुस्तान की आवाज़...
लेकिन जो कुछ भी हो रहा है उसे आप भी जानते हैं क्यूंकि ख़बरें आप भी देखते हैं और अगले दिन न्यूज़ पेपर में पढ़ते भी हैं...पहले बात करते हैं विधानसभा की...शुरुआत वहीं से जहां हिंदुस्तान शुरु होता है जम्मू-कश्मीर विधानसभा में जो हंगामा इस वक्त बरपा हुआ है आख़िर वो सब क्यूं है... शोपियां बलात्कार और हत्या मामले को लेकर पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती विधानसभा अध्यक्ष की आसंदी तक पहुंच गई एक माइक उन्होने उठाकर फेंक दिया और दूसरा माईक भी उखाड़ने की कोशिश की लेकिन वो उनसे उखड़ नहीं पाया...अगले दिन फिर हंगामा हुआ और 2006 का सेक्स स्कैंडल का मामला गूंजा...इस बार निशाने पर आ गए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और वो अकेले नहीं बल्कि मुज़फ़्फर हुसैन बैग ने उनके वालिद और पूर्व मुख्यमंत्री फारूख़ अब्दुल्ला को नहीं बख़्शा और सेक्स स्कैंडल में दोनो का नाम घसीट दिया...बस फिर क्या था मुख्यमंत्री को ग़ुस्सा आ गया और उन्होने इस्तीफ़े का एलान कर दिया...और उस एलान के बाद विधानसभा में जो नज़ारा देखने को मिला क्या ऐसी होती है विधानसभा... और ये सियासी हंगामा अगले दिन भी चला बहरहाल मुख्यमंत्री अपना कार्य संभाल चुके हैं...
सवाल ये है कि आखिर हमारे सियासतदां चाहते क्या है और ये सब करके वो क्या बताना चाहते हैं हमें, क्यूंकि हमने ही उन्हें चुनकर वहां भेजा है...ये नज़ारा सिर्फ कश्मीर का ही नहीं है उत्तरप्रदेश में तो कईं सालो पहले विधानसभा में जो हुआ उसे कहने के लिए तो लफ़्ज़ भी नहीं मिल रहे कि किस तरह से जनप्रतिनिधि वहां एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गए थे...और आज भी वहां नज़ारा कुछ अलग नहीं है....बिहार हो...मध्यप्रदेश...छत्तीसगढ़...उड़ीसा...झारखंड या फिर देश की कोई भी विधानसभा नज़ारा यही देखने को मिलेगा...विधानसभा क्या लोकसभा में भी यही सब कुछ दिख रहा है...और दिखे भी क्यों ना क्यूंकि हमारे देश के हर हिस्से से हमने चुनकर एक सांसद लेकसभा में भेजा है जो संसद में मौजूद है इसलिए कि हमारी समस्या हमारी आवाज़ को वो उस जगह पहुंचा सके...लेकिन संसद में जो कुछ हो रहा है वो किसी से छिपा नहीं है... वहां भी हंगामा ही हो रहा है...कभी किसी मुद्दे पर तो कभी किसी मुद्दे पर...लेकिन ये हंगामा क्यों बरपा हुआ है...
जहां भी जाओ जिधर भी देखो सिर्फ और सिर्फ हंगामा...सवाल ये है कि, क्या इसिलिए इन्हें हम चुनते है...? क्या यही सब हम देखना चाहते हैं...? क्या इसी तरह से ये हमारी परेशानी को ख़त्म कर देंगे...? क्या विपक्ष सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध कर रहा है...? और अगर हां तो ये कब तक चलता रहेगा...? क्या सिर्फ हंगामा खड़ा करने से तस्वीर बदल जाएगी...? या इनमें से कोई है जो ये सूरत बदलेगा...