शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

ममता बनर्जी ने आख़िरकार रेल बजट पेश कर दिया... उम्मीदों की रेल, दीदी का बजट, ममता की छुकछुक, दीदी की रेल और ना जाने क्या-क्या नाम से सभी ने सभी यानि की मीडिया चाहे वो प्रिंट से हो या इलेक्ट्रॉनिक कई तरह के कार्यक्रम चलाए गए, लालू प्रसाद यादव से तुलना भी की गई...उम्मीदें... अपेक्षाएं...ख़्वाहिशें...सपने वो सपने जो लोगों ने देखे और वो सपने जो उन्हें दिखाए गए...उद्योगपति, सियासतदां और आम आदमी सभी की आस लगी हुई थी कि इस मंदी के दौर में ममता किस तरह से अपनी 'ममता' दिखाएंगी... आख़िरकार वो दिन आ ही गया 3 जुलाई 2009 जब ममता बनर्जी अपनी मारूति ज़ेन में बैठकर झोला टांगे संसद पहुंची, सादगी और पुराने विचारों के लिए जाने, जाने वाली रेल मंत्री ने बड़ी ही सहजता और सधी शुरुआत के साथ अपना बजट भाषण शुरु किया, बहरहाल बजट तो पेश कर दिया गया और किस तरह से सादे अंदाज़ में संसद पहुंचने वाली ममता बनर्जी ने रेल्वे के आधुनिकीकरण और आम लोगों को जो कुछ भी देने का एलान किया उसके बाद ग़म तो कहीं नज़र फिलहाल नहीं आ रहा है हां प्रतिक्रियाएं अब सामने आना शुरू होगी, ज़ाहिर सी बात है जब क्रिया होती है तो प्रतिक्रिया होगी ही...सबसे पहले प्रतिक्रिया आई पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव की, लालू ने कहा कि ममता कुंठा से ग्रसित है, बिहार की अनदेखी की गई है, और ये भी कि ममता के इस बजट से रेल को कोई फ़ायदा नहीं होले वाला... ख़ैर बजट आ गया है किसको क्या मिला...? किसको क्या नहीं मिला...? इस पर अब एक बार फिर से बहस ज़रूर होगी क्योंकि हमारे देश में कोई भी 'बात' बिना 'बात' के नहीं कही जाती, यही 'हिंदुस्तान' है और बजट भी 'राजनीति' की छांया से बच जाए ऐसा मुमकिन नहीं... और आने वाले बजट तक ये सब चलता रहेगा बहरहाल मंदी के इस मौसम में मीडिया को भी कुछ तो नहीं, हां बहुत कुछ मिल गया है...

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