सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

किसकी है मुंबई ?

एक ऐसा सवाल जिसका जवाब सबको पता है या फिर किसी को भी पता नहीं है आख़िर किसकी है मुंबई ? मराठी मानुष की, उत्तर भारतीयों की, दक्षिण भारतीय की, एक आम आदमी की, सपनों की, अपनों की, सरकार की, भ्रष्टाचार की, आख़िर किसकी है ये मायानगरी ?
बाल ठाकरे अब बूढ़े हो चुके हैं और पिछले दो चुनावों में शिवसेना हार का सामना कर चुकी है, बाल ठाकरे के बाद उनकी विरासत संभालना थी उनके बेट उद्धव ठाकरे को, लेकिन बेटा वो कुछ नहीं सीख सका जो भतीजा धीरे-धीरे साथ रहकर सीख रहा था, वो सीख रहा था डिवाइड एंड रूल का फॉर्मूला, वो फॉर्मूला जो हिंदुस्तान को विरासत में मिला था अंग्रेज़ो से, फूट डालो, शासन करो। दरअसल ये सब सत्ता की जंग है जिसमें हर बार की तरह पिस रहा है आम आदमी।
शिवसेना का विभाजन हुआ और बनी नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना साथ ही महाराष्ट्र में जन्म हुआ एक और बाल ठाकरे का, नया नाम राज ठाकरे।
राज ठाकरे को ये बताना था कि वो उद्धव से ज़्यादा क़बिल हैं और सेना की कमान वही संभाल सकते थे चाचा-भतीजे और कुर्सी की लड़ाई में वही हो रहा है जिसका हश्र सबके सामने है।
राजनीति में सिर्फ कुर्सी और जीत ही लक्ष्य होता है चाहे वो किसी भी क़ीमत पर मिले लेकिन क़ीमत यहां पर कौन चुका रहा है सबके सामने है, मुंबई पर हक़ जताया जा रहा है जो आग ठंडी हो चुकी थी उसे एक बार फिर से हवा दी गई है भतीजे ने इस आग को फिर हवा दी और चाचा अब इस आग में अपने हाथ सेंकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वो कहते हैं ना कि आग में हाथ सेंकते वक्त सावधानी ना बरती जाए तो हाथ जल भी सकते हैं और शिवसेना के साथ वही हुआ है 26 साल पुराना गठबंधन या समझौते में अब तलाक हो चुका है ! संघ और शिवसेना भगवा राजनीति के दो साथी और सबसे बड़े घोषित स्तंभ लेकिन मराठी-ग़ैर मराठी विवाद पर अब दोनो आमने-सामने हैं। संघ का बयान आया मुंबई सबकी है, जवाब में सेना ने हमला बोला हमें ना सिखाएं, भाजपा... संघ का ही गोद लिया बेटा जो या यूं कहें की चेहरा भाजपा का है लेकिन पीछे संघ खड़ा है सबको पता है, भाजपा ने भी कह दिया की ‘सभी भारतीयों को देश में कहीं भी बसने का हक़ है’ इसी बयानबाज़ी में राज भी कूदे और कह दिया कि ‘मुंबई में जन्म लेने वाला ही मराठी’, राहुल गाधी बोले केंद्रीय गृह मंत्री भी बोले की मुंबई सबकी है, लेकिन सवाल ये है कि ये सबको पता है कि मुंबई सबकी है लेकिन अपने ही देश में ये बात बताई क्यों जा रही है, क्या मुंबई महाराष्ट्र में नहीं है ? क्या महाराष्ट्र भारत में नहीं है ? क्या महाराष्ट्र में भारतीय नहीं रहते ? क्या जो मराठी मानुष की बात करते हैं वो मराठी मानुष को भारतीय नहीं मानते ? सवाल कई है लेकिन जवाब मांगा किससे जाए ? अगर मुंबई इन्हीं लोगों की जागीर है तब कहां गए थे ये लोग जब 26/11 जैसा सबसे बड़ा हमला मुंबई पर हुआ था तब क्या नींद आ गई थी इन लोगों को ? अगर इतने ही मुंबई के हिमायती और जागीरदार हैं तो चले आते मैदान में और ख़त्म कर देते उस दुश्मन को जो देश की तरफ़ बार बार नज़र उठाने की हिम्मत करते हैं, देश को अगर बचा नहीं सकते तो, अगर उसे ताक़तवर नहीं बना सकते अगर उसे एक मुट्ठी तरह बाध नहीं सकते वो मुट्ठी जिसकी ताक़त पर हमें नाज़ है तो कम से कम उसे कमज़ोर मत करो अपने स्वार्थ के चक्कर में। लेकिन सबके बीच महाराष्ट्र सरकार क्यों चुप है यो बात ज़रूर चुभती है क्यों इस तरह के लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं होती, जवाब है वो भी तो राजनीति और कुर्सी को हाथों मजबूर है और शायद ये सरकार भूल गई है आख़िर ये मुंबई है किसकी ?

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